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सरकारी योजनाओं की जमीनी हकीकत: कागजों पर विकास, हकीकत में क्या?

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  सरकारें लगातार नई-नई योजनाएं लाती हैं, जिनका मकसद होता है गरीबों, किसानों और आम नागरिकों का जीवन बेहतर बनाना। 'मनरेगा' से लेकर 'प्रधानमंत्री आवास योजना' तक, इन योजनाओं के बड़े-बड़े वादे होते हैं। लेकिन क्या ये वादे हमारे गांव तक पहुंचते हैं? क्या वाकई जरूरतमंदों को इनका फायदा मिलता है? अक्सर, कागजों पर तो इन योजनाओं का शानदार प्रदर्शन होता है। ग्राम पंचायत की मीटिंग्स में, सरकारी रिपोर्ट में और समाचार पत्रों में बताया जाता है कि 'इतने करोड़' खर्च हुए, 'इतने' घर बने और 'इतने' लोगों को रोजगार मिला। लेकिन जब हम गांव की गलियों में, कच्चे मकानों के पास और बेरोजगार युवाओं से बात करते हैं, तो हकीकत कुछ और ही होती है।



योजनाओं में भ्रष्टाचार का सबसे बड़ा कारण पारदर्शिता की कमी है। जब जनता को यह पता ही नहीं होता कि किस योजना के लिए कितना फंड आया और वह कहां खर्च हुआ, तो हेरफेर करने वालों को खुली छूट मिल जाती है। अक्सर, एक ही परिवार के कई सदस्यों के नाम अलग-अलग योजनाओं में दर्ज हो जाते हैं, जबकि असली हकदार को कुछ नहीं मिलता। 'मनरेगा' में मजदूरों की हाजिरी फर्जी तरीके से भरी जाती है, ताकि कुछ अधिकारी और ठेकेदार पैसे आपस में बांट सकें। गांव के बुजुर्गों और विकलांगों के नाम पर पेंशन का पैसा निकाल लिया जाता है, लेकिन उन्हें कभी मिला ही नहीं।

इस समस्या से लड़ने का सबसे प्रभावी तरीका है जागरूकता। हमें यह जानना होगा कि हमारे गांव के लिए कौन सी योजनाएं लागू हैं, उनके लिए कितना फंड आया है और उसके लिए क्या मापदंड हैं। अक्सर, इन योजनाओं की जानकारी ग्राम पंचायत कार्यालय में एक नोटिस बोर्ड पर होनी चाहिए, लेकिन ऐसा होता नहीं है। हमें खुद ही इस जानकारी को मांगना होगा, और इसके लिए आरटीआई सबसे अच्छा माध्यम है।

उदाहरण के लिए, अगर आपके गांव में 'प्रधानमंत्री आवास योजना' के तहत घर बने हैं, तो आप आरटीआई के माध्यम से उन सभी लोगों के नाम मांग सकते हैं जिन्हें इस योजना का लाभ मिला है। आप उन घरों की फोटो और वीडियो की मांग भी कर सकते हैं। आप यह भी पूछ सकते हैं कि इस योजना के लिए फंड कब जारी हुआ और वह किस बैंक खाते में गया। जब आप ये जानकारी लेंगे, तो आपको तुरंत पता चलेगा कि क्या कोई ऐसा नाम है जो कागजों पर तो है, लेकिन असल में वहां कोई घर नहीं बना।

इस तरह की गड़बड़ियों को उजागर करने के लिए सिर्फ आरटीआई काफी नहीं है। हमें एकजुट होना होगा। जब गांव के लोग एक साथ मिलकर सवाल पूछते हैं, तो अधिकारियों को जवाब देना पड़ता है। सोशल मीडिया भी एक बहुत शक्तिशाली टूल बन गया है। आज लोग अपने फोन से वीडियो बनाकर या फोटो खींचकर इन गड़बड़ियों को उजागर कर सकते हैं। एक छोटा सा वीडियो भी बड़े से बड़े घोटाले का पर्दाफाश कर सकता है।

यह समझना होगा कि ये पैसा हमारा है, जनता का है। यह उस टैक्स का पैसा है जो हम अपनी कमाई से देते हैं। अगर इस पैसे का सही इस्तेमाल नहीं होगा, तो हमारे गांव का विकास कभी नहीं होगा। हम कभी गरीबी, अशिक्षा और बेरोजगारी से बाहर नहीं निकल पाएंगे। यह हमारी जिम्मेदारी है कि हम अपने अधिकारों के प्रति जागरूक रहें और जब भी कोई गड़बड़ी दिखे, तो उसे बेझिझक उजागर करें।

अंत में, यह एक लंबी लड़ाई है, लेकिन यह एक जरूरी लड़ाई भी है। जब हम सवाल पूछना शुरू करेंगे, तभी वे डरेंगे। जब हम जवाबदेही की मांग करेंगे, तभी पारदर्शिता आएगी। हमारे गांव का भविष्य हमारे हाथ में है।

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