ग्राम पंचायत के खजाने में सेंध
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ग्राम पंचायतों को हर साल केंद्र और राज्य सरकारों से करोड़ों रुपये का फंड मिलता है। यह पैसा गांवों में विकास कार्य, जैसे सड़कें बनाना, पानी की व्यवस्था करना, स्कूलों का रखरखाव करना और सामुदायिक भवन बनाना, इन सब के लिए होता है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि यह पैसा कहां जाता है? अक्सर, यह पैसा उन अधिकारियों और कर्मचारियों की जेबों में चला जाता है जिन्हें इन योजनाओं को लागू करना होता है। कागजों पर, सब कुछ बिल्कुल सही होता है। ग्राम सभाओं में प्रस्ताव पास होते हैं, टेंडर निकाले जाते हैं, और काम पूरा होने के बिल भी बन जाते हैं। लेकिन जब आप गांव में जाकर देखते हैं, तो न सड़क बनी होती है, न पुलिया, और न ही कोई नया सामुदायिक भवन।
इस तरह का भ्रष्टाचार सिर्फ ग्राम पंचायत के स्तर पर नहीं होता, बल्कि इसका सीधा असर पूरे देश के विकास पर पड़ता है। जब हमारे गांव ही पिछड़े रहेंगे, तो हमारा देश कैसे आगे बढ़ेगा? इस भ्रष्टाचार का सबसे बड़ा शिकार गरीब और जरूरतमंद लोग होते हैं। उन्हें न तो योजनाओं का लाभ मिलता है, और न ही विकास का।
तो, इस समस्या से कैसे लड़ा जाए? सबसे पहला कदम है जागरूकता। हमें यह जानना होगा कि हमारे ग्राम पंचायत को किस योजना के तहत कितना पैसा मिला। यह जानकारी अक्सर ग्राम पंचायत कार्यालय में होती है, लेकिन उसे छुपाकर रखा जाता है। इसके लिए आप सूचना का अधिकार (RTI) का इस्तेमाल कर सकते हैं। एक RTI के माध्यम से आप ग्राम पंचायत के पिछले कुछ सालों के आय-व्यय के ब्यौरे (statement of income and expenditure) की मांग कर सकते हैं। आप पूछ सकते हैं कि 'स्वच्छ भारत मिशन' के तहत कितने शौचालय बने और उस पर कितना खर्च आया? आप 'मनरेगा' के तहत किए गए कामों की सूची और मजदूरों को दी गई मजदूरी की जानकारी भी मांग सकते हैं।
जब आप ये जानकारी लेंगे, तो आपको पता चलेगा कि कौन सी जानकारी अधूरी है या गलत है। अक्सर, फर्जी बिलों को असली दिखाने के लिए अधिकारियों और कर्मचारियों के बीच मिलीभगत होती है। वे एक ही काम के लिए कई बार बिल बनाते हैं, या फिर बिना किसी काम के ही बिल बना देते हैं। इस तरह के घोटालों का पर्दाफाश करना आसान नहीं है, लेकिन असंभव भी नहीं है।
इसके लिए हमें संगठित होकर काम करना होगा। जब एक व्यक्ति सवाल पूछता है, तो उसे आसानी से चुप कराया जा सकता है। लेकिन जब पूरा गांव एक साथ खड़ा हो जाता है, तो अधिकारियों को जवाब देना ही पड़ता है। सोशल मीडिया, स्थानीय अखबार और टीवी चैनल भी इस लड़ाई में हमारे साथी हो सकते हैं। एक छोटा सा वीडियो या एक खबर भी बड़े से बड़े घोटाले का पर्दाफाश कर सकती है।
यह समझना बहुत जरूरी है कि यह लड़ाई सिर्फ पैसे के लिए नहीं है, बल्कि हमारे भविष्य के लिए है। अगर हम आज चुप बैठ गए, तो कल हमारे बच्चे भी उसी गरीबी और बदहाली में रहेंगे। हमारे पास ताकत है, और वह है हमारी आवाज। जब हम अपनी आवाज उठाएंगे, तो वे डरेंगे। जब हम सवाल पूछेंगे, तो उन्हें जवाब देना पड़ेगा।
आइए, हम सब मिलकर इस भ्रष्टाचार के खिलाफ एक नई लड़ाई शुरू करें। हम अपने गांव को, अपने देश को, एक बेहतर जगह बनाएं। यह तभी संभव है जब हम अपनी जिम्मेदारी समझें और अपने हक के लिए लड़ें।